Thursday, January 17, 2013

बुझने से पहले

एक दिया जो बस बुझने को था
अँधेरे से जारी युद्ध रुकने को था
रुई की बाती रुक रुक कर सांस लेने लगी
हवा भी अब अँधेरे का ही साथ देने लगी
फिर तेज़ रोशनी हुई और अँधेरा हो गया
एक तरफ दिए को जलते न रहने का मलाल था
दूसरी तरफ अँधेरे का दिए से एक ही सवाल था
अब तक तुम बस धीरे धीरे जल रहे थे फिर हुआ यूँ
बहुत तेज़ रोशनी हुई और तुम बुझ गए, ऐसा क्यूँ
दिए ने धुएं की लम्बी सी सांस ली और बोला
अपने सबसे बड़े दुश्मन सामने ये राज़ खोला
आखिरी वक़्त में भी मेरी यही कोशिश बरकरार थी

पूरी हिम्मत जुटा कर रोशनी फैला सकूं बुझने से पहले, ताकि
कुछ और लोगों को उजाले का मतलब समझा सकूं बुझने से पहले
किसी भटके हुए को रास्ता दिखा सकूं दूर तक बुझने से पहले...

2 comments:

  1. Nice Dear Realy to nice
    n kya ye tumhari think hai Agr hai to thats V. Gd

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  2. Hllo Rajendra ji,
    Yh humne nhi likha hai. bt hume yh kaafi psnd aaya to hume apne blog me post kiya. Hume kuch is tarah ki rachnaye psnd hai.. :)

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