Wednesday, October 13, 2021

कलियुग की कहानी

आज मै आप लोगो को एक कहानी सुनाती हूँ 

समय की रफ़्तार 

एक घर मेने ऐसा भी देखा जहाँ बस बस प्यार ही प्यार दिखा,

न तेज आवाज दिखी न ही चिल्लाना दिखा 

बचपन बीता लाड प्यार में, न दिखी कोई कमी 

पर एक दिन घर के मुखिआ की मृत्यु ने समझदारी सिखा दी  :( 

घर के २ नौजवान लड़के अब बड़े हो गए 

उन्हें समाज ने जिम्मेदारी समझा दी 

घर का बोझ उठाते हुए समाज में बड़ी पहचान बना ली 

वो माँ जो त्याग की मूरत थी, दिन रात करती थी काम 

पूरा घर ऐसे संभाला जैसे माँ अन्नपूर्णा हो नाम 

फिर आई वो विकट घडी जब उस माँ को, अपने ही घर से उठा फेका बाहर 

क्योकि अब बारी थी प्रेयसी की, घर में लाने को बहार 

धीरे धीरे घर का हो गया बटवारा, अब तो माँ को भी दो भाइयों ने आपस में बाँट डाला 

अपनी अपनी जिंदगियों में हो गए इतने मगन 

छोटी बहन क्या संघर्ष कर रही नहीं है कोई शिकन 

घर में नहीं है अब आटा दाल चल रहा गुज़ारा 

पर उन संस्कारित बेटो का नहीं है कोई सहारा 

घर की छोटी लड़की की कमाई से चल रहा घर 

बेशर्मी इतनी की और मांग रहे धन 

आगे की पढाई के लिए नहीं है रुपये, 

पर उससे ज्यादा जरूरी जीवनसंगिनी का जन्मदिन 

उसकी शादी की चिंता ही क्या, समाज का कोई डर नहीं 

उम्र बीती जा रही, समय की कोई फ़िक्र नहीं 

बौद्धिक, राजनीतिज्ञ, सामाजिक पिता का नाम यूँ ही डुबो दिया 

उनकी पत्नी और बेटी को बेनामी में छोड़ दिया 

वैयक्तिक जीवन में हो गए इतने मगन 

न लाज लाज बची न शरम 

एक घर मेने ऐसा भी देखा।


आज के कलियुग में कुछ आदमियों को औरत की गुलामी इतनी पसंद है, की वो उसका नौकर बनना पसंद करेंगे न की उस माँ का बेटा जिसने पूरी ज़िंदगी ही राजा बेटा बना कर सेवा की | 

एक महिला जिसने अपने पूरे सुख त्याग दिए अपने बेटो के लिए उनसे बदले में क्या मिला तिरस्कार, उपेक्षा, जिल्लत की ज़िंदगी ?  



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